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कविता

मधुर! बादल, और बादल, और बादल

माखनलाल चतुर्वेदी


मधुर ! बादल, और बादल, और बादल आ रहे हैं
और संदेशा तुम्हारा बह उठा है, ला रहे हैं।।

गरज में पुरुषार्थ उठता, बरस में करुणा उतरती
उग उठी हरीतिमा क्षण-क्षण नया शृंगार करती
बूँद-बूँद मचल उठी हैं, कृषक-बाल लुभा रहे हैं।।
नेह! संदेशा तुम्हारा बह उठा है, ला रहे हैं।।

तड़ित की तह में समाई मूर्ति दृग झपका उठी है
तार-तार कि धार तेरी, बोल जी के गा उठी हैं
पंथियों से, पंछियों से नीड़ के रुख जा रहे हैं
मधुर! बादल, और बादल, और बादल आ रहे हैं।।

झाड़ियों का झूमना, तस्र-वल्लरी का लहलहाना
द्रवित मिलने के इशारे, सजल छुपने का बहाना।
तुम नहीं आए, न आवो, छवि तुम्हारी ला रहे हैं।।
मधुर! बादल, और बादल, और बादल छा रहे हैं,

और संदेशा तुम्हारा बह उठा है, ला रहे हैं।।


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